लौ दियें की
लौ दियें की
लौ दीये की जलती है
एक आस नई सी जगती है
अपने इस अंतर्मन में
कुछ ख्वाब नया सा बुनती हूँ
अपनी पहचान बनाने को
इक नई डगर पे निकलती हूँ
जीवन के हैं दो पहलू
हर निराशा को दूर कर
आशाओं को जगमग कर लूँ
मानुष इस जीवन में
पल पल हो रहा परिवर्तन है
अगले पल का पता नहीं
कब शह मिले या मात मिले
फिर भी इक आस नई सी जगती है
कुछ ख्वाब नया सा बुनती हूँ
लौ दिये की जलती है
जब सुख में खुश हो जाते हैं
तब दुःख में घबराते हैं क्यूँ
क्या कभी ठहर पाया यह जीवन
सदैव इसमें होता परिवर्तन
गर्मी के बाद मेघ बरसता
पतझड़ के बाद बसंत मुस्कुराता
एक आस नई सी जगती है
कुछ ख्वाब नया सा बुनती हूँ
लौ दिये की जलती है
हर आरम्भ का होता अंत है
हर सुबह की होती शाम
पर अडिग खड़ी रहूँगी
दूँगी कार्यों को अंजाम
ईश्वर ने जो चक्र बनाया
शायद सब ने समझ ना पाया
जब टूटते हैं ख्वाब मेरे
पर होता नया सवेरा है
कुछ ख्वाब नया सा बुनती हूँ
लौ दिये की जलती है
एक आस नई सी जगती है
अँधियारा दूर भगानें को
मन का उजियारा फैलाने को
सपनों के सच हो जाने को
कुछ ख्वाब नया सा बुनती हूँ
लौ दिये की जलती है
एक आस नई सी जगती है।।
