STORYMIRROR

Shital Yadav

Tragedy

3  

Shital Yadav

Tragedy

क्यों अक्सर

क्यों अक्सर

1 min
244

हार या जीत के खेलों में जब उलझती है बात 

नसीब के तराज़ू में कामयाबी तौलती जज़्बात 


आसान नहीं होती पा लेना ज़िंदगी की मंज़िल 

मेहनत के ज़ोर पर बनते हैं वजूद और बिसात


उजड़ जाते हैं परिवार दौलत से आती है दरार 

क्यों अक्सर अपनों से मिलती है रिश्तों में मात


भरोसा नहीं अब मौसमों के बदलते हैं मिज़ाज 

बंजर जमीं हैं कहीं तूफानों संग हो रही बरसात 


मोहरा बनकर शतरंज का जी रहा है यहाँ इंसान 

चलते हैं चाल करम से बदलने नसीब के हालात



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy