क्यों अक्सर
क्यों अक्सर
हार या जीत के खेलों में जब उलझती है बात
नसीब के तराज़ू में कामयाबी तौलती जज़्बात
आसान नहीं होती पा लेना ज़िंदगी की मंज़िल
मेहनत के ज़ोर पर बनते हैं वजूद और बिसात
उजड़ जाते हैं परिवार दौलत से आती है दरार
क्यों अक्सर अपनों से मिलती है रिश्तों में मात
भरोसा नहीं अब मौसमों के बदलते हैं मिज़ाज
बंजर जमीं हैं कहीं तूफानों संग हो रही बरसात
मोहरा बनकर शतरंज का जी रहा है यहाँ इंसान
चलते हैं चाल करम से बदलने नसीब के हालात