परिंदे
परिंदे


चाहतें मौसमी परिंदे हैं रुत बदलते ही लौट जाते हैं
पंख फैलाकर छू लेते यूँ आसमां बांहों में भर लाते हैं
तमाम कोशिशें कर ले जुदा कभी न होती है मोहब्बत
हर पल में ज़िंदगी के साथ एक दूजे ख़ुशी का पाते हैं
अक्सर तलाशते हैं वजूद इश्क़ का सफ़र-ए-हयात में
मसरूफ़ रहते जुस्तजू-ए-चाहत में दीवाने कहलाते हैं
ज़रूरी नहीं दौलत, चाहिए सच्ची लगन मन में 'शीतल'
तभी गहराइयों से दिल के रिश्ते आपस में जुड़ पाते हैं
अपना लो किसी को ख़ूबी और खामियों के संग अगर
आसान सी लगती ज़िंदगी के सारे ग़म भी मुस्कुराते हैं