मैं और मेरी क़लम
मैं और मेरी क़लम
जज़्बात-ए-ज़िन्दगी को लफ़्ज़ बना देते है नज़्म
बयाँ कर एहसास काग़ज़ पर मैं और मेरी क़लम
गहराइयों से है समझती महसूस कर दर्द-ए-दिल
ख़ुशियों के रंग बिखराती कभी आँखें कर दे नम
रिश्ता अटूट हम दोनों का है अधूरे एकदूजे बिन
बसती हैं धड़कनें क़लम में कशिश ना होती कम
बनकर रहनुमा देती है हौसला आगे बढ़ते रहना
रुकना नहीं हार से सीखाती लिखते रहना पैहम
हर सफ़्हा ज़िंदगी का होता नया आग़ाज़ 'शीतल'
देती क़लम अंजाम ऐसे कामयाब हो जाता जनम!