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क्या था उसका ?

क्या था उसका ?

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फिर वही नींद की दहलीज़ और आना उसका

फिर वही सुबह को ना पाना उसका

अब ये शिकायत नहीं इस कर मुझको

देखता हूँ जो पैमाने में उतरना उसका


इंसान है हद से बाहर जाना उसका

ज़र्रे की परवाज़ और इतराना उसका

रूहे जुदाई का वक़्त आ पहुँचा

पिघलता ग़रूर और चरमराना उसका


महफ़िल में बस एक चेहरा उसका

ज़कात मिलती है मुसकराना उसका

ज़मीदोश हुई तार से धुन गिरकर

जब सुना नज़र से नगमा उसका


बेमिसाल था बड़ा जीना उसका

न मिला क़ब्र में निशां उसका

मिट्टी को आये नहीं अदब के फरायिज़

वरना ख़ाक से उठता मुजस्समा उसका


अजम को उर्दू सिखलाना उसका

मोहब्बत में उतर जाना उसका

अब जो वो राज़ी है सब्र के लिये

इस बात पर भी बिगड़ जाना उसका


जब न पैदा हुआ दाना उसका

संग हाथ मे उठाना उसका

रहबरों को याद था उसका दीन मगर

उठ चुका था दिल से मज़हब उसका


उड़ा रही है मज़ाक ग़ुरबत उसका

सी रहा है माज़ी वजूद उसका

जिसके जज्बात मसाला हैं तमाशों के

बाद महफिल न सुना बयान उसका


मैं भी तब तक हूँ तसव्वुर उसका

कह न दूँ दिल चाहा ख़्याल उसका

हमनवा रहा जो एक मुद्दत तक

बेवफ़ा यूँ हो जाना उसका।।


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