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Manju Mahima

Romance

4.9  

Manju Mahima

Romance

कुछ पता भी न चला

कुछ पता भी न चला

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धीरे-धीरे तुम्हारी बातों की आदत हो गई मुझे,

और कब तुम्हारे ख्याल 'हम-ख्याल' हो गए,

कुछ पता भी न चला ।

यूँ तो बहुत सी राहें थीं, मेरे कदमों के लिए,

पर कब मेरे कदम तेरे 'हम-कदम' हो गए,

कुछ पता भी न चला ।

हँस रहे थे हम भी ज़माने के साथ,

पर कब ग़म से तेरे, आँख मेरी’ ‘ग़मगीन’ हो गई

कुछ पता भी न चला ।


चलते-चलते तपन भरी ज़िंदगी में साथ-साथ,

कब तुम्हारा साया ‘हमसाया’ बन गया

कुछ पता भी न चला।

कहाँ धरती, कहाँ आसमां? दूरी थी बहुत,

कब झुक आया आसमां पाषाणी कुचों पर,

कुछ पता भी न चला।


भावनाओं के गहराते मेघों से भीगी पीत धरती

कब हरी हो गई, नीलाकाश के सहवास से,

कुछ पता भी न चला।



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