त्रिशंकु
त्रिशंकु
त्रिशंकु की भांति,
लटकी अधर में,
धरातल को तलाशती,
पश्चिम और पूर्व की,
संस्कृतियों के मध्य,
क्रीड़ा-कंदुक सी,
रस्साकशी के खेल को
सजीव करती,
भारतीय नारी,
अनिश्चयों की दहलीज़ पर,
खड़ी दिग्भ्रमित सी,
अपनी अस्मिता को
खोजने का
कर रही है प्रयास आज।।