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Manju Mahima

Drama

2.5  

Manju Mahima

Drama

मरुथल की मृगी औरत

मरुथल की मृगी औरत

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सुबह से शाम तक

का सफ़र,

तय तो हो जाता है

जैसे-तैसे

पर,


संतुष्टि जैसे

दूर बहुत दूर लगती है,

मरीचिका सी।


किन्तु मैं निराश नहीं,

दौड़ते रहना है

मुझे भी,


उसी मृगी की तरह

जो दम तोड़ देती है

मरुथल में,


पर रुकती नहीं।।


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