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Manju Mahima

Fantasy

5.0  

Manju Mahima

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नारी विमर्श -हवा का रुख

नारी विमर्श -हवा का रुख

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छितराया हुआ सा बादल,

ख्वाइशों का,

हवा के रुख ने ,

उसका रास्ता ही बदल दिया.

धुंधला चुकीं हैं ,

निगाहें अब तो तकते-तकते,

पर फिर भी कोशिश ,

रहती है पकड़ने की उसे,

हलक में फंसे काँटे की तरह,

क़तरा-ए-उम्मीद

अभी भी बाक़ी है,

कि शायद हवा ही उसे

मेरी झोली में डाल जाए

फिर से रुख बदलकर .


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