बोनसाई : औरत
बोनसाई : औरत
जड़ें तराश-तराश कर,
बोनसाई तो अब बनाए जाने लगे हैं,
औरत तो सदियों पहले ही
बोनसाई बना दी गई थी,
जो अपने गृहस्थी के गमले में
उग तो सकती थी,पर
ऊँची उठ नहीं सकती थी
जो फल तो दे सकती थी,
पर अपनी सुरभि
फैला नहीं सकती थी...
वह बन कर रह गई
बस घर की सजावट मात्र.
जिसे सुविधानुसार जब चाहे तब,
कहीं भी , कैसे भी सजा दिया जाता है.
जड़े तराश तराश कर
बोनसाई तो अब बनाए जाने लगे हैं,
पर औरत तो सदियों पहले ही
बोनसाई बना दी गई थी|
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