कल और आज !
कल और आज !
जिस तरह की चाह थी,
मुझको मिली तुम प्रियतमा।
व्यक्त कर दूूं भाव भी,
ग़र तुम सुनो ओ प्रियतमा।।
रुप,रंग, रस-गंंध तेरी,
मुझ पे जादू बन घना।
घुंघरुओं से बाल तेरे,
हर लिया करते मना।।
है तेरी मुस्कान सचमुच,
क़ायनात भी हो फ़ना।
चाल उछले जैसे हिरनी,
जंगलों मेें अति घना।।
छा गई हो बेल बनकर,
मैं रहा हूं बस तना।
हर लिया हर छन है तुुुमने,
जैसे मैं मूरख बना।।
कल तलक जो बोल थे,
शहदी परत लिपटे हुए।
हो चले क्यों तल्ख वे,
यह ज़ुल्म तुमने क्यों किये।।
मैं वही मनमीत तेेेरा,
है मेरा वैसा ही घेरा।
क्यों तेरी गुस्ताख़ नज़रेें,
तिलमिला दें मन मेरा।।
जन्म जन्मांंतर ये बन्धन,
क्यों हो करुणा और क्रन्दन।
सुरसती अब तेरा वंदन,
शुद्ध कर दे युगल का मन !