ख्वाबों में अजनबी
ख्वाबों में अजनबी
रात भर मुझे बेचैन उसने किया
इक अजनबी ने आज रातभर मुझे चैन से सोने न दिया।
बड़ी अजीब सी बेचैनी थी उसकी होने के एहसास से
न जाने कब आयेगा वो मिलने मुझे कब उसका दीदार होगा।
अभी तो ख्वाबों में रोज उसका आना जाना है,
पलकों को बंद करते ही हो जाता वो हमारा है।
खोलते ही पलकें वो न जाने कहां चला जाता है,
ढूँढूं भी कैसे उसे उस अजनबी का
ख्वाबों में चेहरा कहां नजर आता है।
बेचैन सी सांसे मिलने को उससे व्याकुल हैं
अब आ भी जाओ कि नैना मेरे तेरे दर्श को प्यासे हैं।
सोचती हूं जब आयेगा तू तो क्या वो मंजर होगा
दुल्हन बनूंगी मैं तू मेरा दूल्हा होगा।
हाथ बढ़ा कर तू जब मेरे बदन को छुयेगा
सच कहती हूं उसदिन मेरा दिल न बस में मेरे रहेगा।
अभी तो तूं ये अजनबी बस मेरी पलकों में बसा है,
जब मिलेगा तूं सच में मुझे तब तो तेरा मेरी रूह में बसेरा होगा।