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Vandana Singh

Drama Fantasy

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Vandana Singh

Drama Fantasy

खिवैया

खिवैया

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जलते-जलते ये,

लौ भी पिघल गया,

अब किसका सहारा,

ले ये दिल।


घड़ी की सुईयाँ,

टिक-टिक करके,

जाने कब जम गयी।


किसी के पैरों की,

आहट के लिए,

तरस गया है ये दिल,

धीरे-धीरे ये नाव,

कौन पार लगा रहा।


ये निकाल रहा है,

या मुझे डूबा रहा,

पर अब तो डूबना,

ही एकमात्र सहारा है।


ना ही इस,

नदी में खिवैया,

ना ही किनारा है।


रुकना भी नहीं,

चाहता है मन,

ग़र रुक गए,

ग़र तुम मिल गए।


किस मुँह से,

कह सकेंगे,

लौट जाओ तुम,

नए खिवैया ने,

थाम लिया हमें।


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