कहा मैंने
कहा मैंने


उसकी आँखों को आँखें नहीं झील कहा मैंने,
कलेजा पत्थर है उसका पर उसको भी दिल कहा मैंने।
एक उसकी चाहत में कई रिश्ते भी ठुकरा दिए,
और उसके दर को ही मंज़िल कहा मैंने।
हर शब उसकी आँखों में खटकती रही यह चांदनी,
उसके इस हमाकत को भी फाजिल कहा मैंने।
धड़कनें तेज हुई और कई साँसे रुकी उसके
आने से बज़्म में,
उसको बचाने की ख़ातिर, मक्तूल होकर भी खुद
को कातिल कहा मैंने।
कोई खास मसअ'ला नहीं था बस माफ़ी मांगनी थी,
और इस छोटे से काम को भी मुश्किल कहा मैंने।