विरह की वेदना
विरह की वेदना
तेरा छोड़ के जाना दिल तोड़ गया
अंदर से प्यार का फूल मुरझा गया
टुटा कुछ ऐसा हृदय की
नैनो से सैलाब निकल आया।
छिन गयी अधरों की मुस्कान
बैचैनी सी आ गयी अंदर
हर खाना लगता अब बेस्वाद
हर बात लगती अब बनावटी।
हर रिश्ते अब बेमांनी नज़र आने लगे
नींद का आना तो जैसे हो गया सपना
यादो का आना जैसे महफ़िल हो गया
हर चमक बाजार की अब फीकी हो गयी।
हर सिनेमा अब मनोरंजन हीन हो गया
खूबसूरती कपडे की पुराणी नज़र आने लगी
मेरी काया अब रोगी नज़र आने लगी
हर काया अब लाश नज़र आने लगी।
मदिरा अब प्यारी नज़र आने लगी
मौत तो अब दुल्हन नज़र आती है।

