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Shravani Balasaheb Sul

Romance Fantasy Others

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Shravani Balasaheb Sul

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कभी न कभी

कभी न कभी

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यूँ ही बेवजह लगता है कभी

कि आओगे तुम कभी न कभी

फिर एक दफा आँखों से कुछ

कह जाओगे तुम कभी न कभी

जो संगीत के शब्द बाकी हैं

वह गीत गाओगे तुम कभी न कभी

मेरी आँखों में अपनी परछाई

तब पाओगे तुम कभी न कभी

यूँ ही मुझ पे हक जताकर

सताओगे तुम कभी न कभी

मेरे चेहरे को निगाहों के पहरे से

सजाओगे तुम कभी न कभी

जिसे सुनने को तरसी हूँ मैं

वह बात बताओगे तुम कभी न कभी

खुद को जितना भी सख्त कह लो

जज्बात जताओगे तुम कभी न कभी

तन्हाई में देखना अपनी

मुझे याद करोगे तुम कभी न कभी

यादों में मेरी सहलाकर खुद को

शाद करोगे तुम कभी न कभी

आईने में आँखें तो देखते होगे

जब आँखों में देखोगे कभी न कभी

 कही न कही उनमें देख मुझे

देखते ही रह जाओगे कभी न कभी

तब एक नजर मेरा दीदार करने

तरसोगे तुम कभी न कभी

दुबारा मुझ पे बन प्रीत का सावन

बरसोगे तुम कभी न कभी

मुझसे रूठ जाने के लिए

खुद ही से रूठोगे तुम कभी न कभी

जिस किनारे हमने कुछ मोती थे खोए

वहाँ हार के बैठोगे तुम कभी न कभी

मन में गर कुछ बैर हैं

हटाओगे तुम कभी न कभी

दरमियाँ जितनी हैं दूरियां

मिटाओगे तुम कभी न कभी

चलते चलते लगता हैं अक्सर

किसी डगर पे मिलोगे तुम कभी न कभी

जिंदगी की सड़क पर उमर भर

साथ चलोगे तुम कभी न कभी


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