कभी न कभी
कभी न कभी
यूँ ही बेवजह लगता है कभी
कि आओगे तुम कभी न कभी
फिर एक दफा आँखों से कुछ
कह जाओगे तुम कभी न कभी
जो संगीत के शब्द बाकी हैं
वह गीत गाओगे तुम कभी न कभी
मेरी आँखों में अपनी परछाई
तब पाओगे तुम कभी न कभी
यूँ ही मुझ पे हक जताकर
सताओगे तुम कभी न कभी
मेरे चेहरे को निगाहों के पहरे से
सजाओगे तुम कभी न कभी
जिसे सुनने को तरसी हूँ मैं
वह बात बताओगे तुम कभी न कभी
खुद को जितना भी सख्त कह लो
जज्बात जताओगे तुम कभी न कभी
तन्हाई में देखना अपनी
मुझे याद करोगे तुम कभी न कभी
यादों में मेरी सहलाकर खुद को
शाद करोगे तुम कभी न कभी
आईने में आँखें तो देखते होगे
जब आँखों में देखोगे कभी न कभी
कही न कही उनमें देख मुझे
देखते ही रह जाओगे कभी न कभी
तब एक नजर मेरा दीदार करने
तरसोगे तुम कभी न कभी
दुबारा मुझ पे बन प्रीत का सावन
बरसोगे तुम कभी न कभी
मुझसे रूठ जाने के लिए
खुद ही से रूठोगे तुम कभी न कभी
जिस किनारे हमने कुछ मोती थे खोए
वहाँ हार के बैठोगे तुम कभी न कभी
मन में गर कुछ बैर हैं
हटाओगे तुम कभी न कभी
दरमियाँ जितनी हैं दूरियां
मिटाओगे तुम कभी न कभी
चलते चलते लगता हैं अक्सर
किसी डगर पे मिलोगे तुम कभी न कभी
जिंदगी की सड़क पर उमर भर
साथ चलोगे तुम कभी न कभी।