काव्य
काव्य
हाथ मेहंदी सजा दुल्हन बैठी है ।
तस्वीर यह गहरे जेहन बैठी है।
ख्वाहिशों कोई दूसरा दर देखो
मेरी खुशियां मेरे मन बैठी है।
सादगी बुलंद इस्तक़बाल लिए
लकीरों में छुपाकर धन बैठी है।
रोशनी है सहर आफ़ताब की
बेख़ुदी में कब से मगन बैठी है।
अब मुक्कमल हो जाये जीवन,
मेरी अमानत मेरे रहन बैठी है।