आधुनिकता की दौड़
आधुनिकता की दौड़
दहलीज़ लांघी घूंघट छुटा
नहीं रहा है अब आंचल
जुबां बदली भाव बदला
नहीं रहा वो प्रेम निश्छल
आधुनिकता की दौड़ में
हो रहे है सारे वस्त्र छोटे
मोबाइल प्रयोग बना हावी
कटी परिवार से तुनक के
कंधे से कंधा मिला गर्व से
अब बहस बाजी के साथ में
कपड़ा बदले ज्यों पति बदला
फैशन परेड की नुमाइश में
हीरा थी पीहर ससुराल में
आदर सम्मान सुरक्षा पूर्ण थी
स्वछंद पंछी बन उड़ने लगी
अपनी गरिमा स्वयं खोने लगी।
खाना होटल संतान बालाश्रम
घर सफाई नौकर चाकर भरोसे
पैसे कमाये पति पत्नी मशीनी बन
सास ससुर घर में रहते उल्लु जैसे
संस्कृति अपनी जल गई सारी
पाश्चात्य मैराथन की ये दौड़ है।
खान पान हो गया देशी विदेशी
तलाक बात बात में आम बात है।
शिक्षा से भविष्य सुनहरा बनता
शिक्षा संतानोपयोगी जरूरी है।
शिक्षा से ही आता है अनुशासन
शिक्षा बिना अब नारी अधूरी है।
आजाद है नारी रो रहे सोलह श्रृंगार
चलचित्र ने टीवी पर तोड़ा घर परिवार
कलह बढ़ गया ना रही अब वो मिठास
ये कैसी आजादी है कोई बताये मुझे आज।