दर्प क्यों
दर्प क्यों
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तुम खोजो वह आसमान
जहां तुम्हारा व्यक्तित्व है
मैं भी खोजूं वह जमीन
जहां मेरा भी अस्तित्व है
जुदा होकर जब भी मिलें
कोई शिकायत नहीं हो
जहां मिलें जैसे मिलें तो
कोई किफायत नहीं हो।
जब भी मिलें मुलाकात
दर्पहीन मधुर ख़ास हो
आपस में अनुपम सुखद
मिलने का एहसास हो।