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अरविन्द त्रिवेदी

Tragedy Inspirational

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अरविन्द त्रिवेदी

Tragedy Inspirational

जल, प्रकृति और पर्यावरण

जल, प्रकृति और पर्यावरण

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रे मानव! तू कितना स्वार्थी

हो गया, लालच में फँसकर

निज जीवन के आधारों को

मिटा कर, निज कर्मों से अपनी

अर्थी सजा रहा,


धरती जिसको माता कहता,

अन्नदायनी

सबको आश्रय देने वाली

क्यों मलीन करता है, तू इसे

नहीं छोड़ा, आकाश को भी तूने

सफलताओं के इतिहास तले

विध्वंशकारी भूगोल रच रहा है,

आधुनिकता को रास्ता दिखाने के लिए

काट डाले पेड़ सारे जंगलों के

वीरान सा कर डाला,

प्रकृति के सौन्दर्य को


पानी भी दूषित हो रहा है

घोलत

ा इसमें नित जहर

हवा जो प्राण है, अपने शरीर की

प्रदूषित हो रही, नित नये माध्यमों से

स्वयं तूने उत्पन्न किये, साधन सभी

विनाश के, फिर कोसता क्यों ?


हमेशा परमात्मा को

जीवन के आधार तत्वों में

घोलकर, विष 

कर रहा, आवाह्न प्रलय का

स्वयं का अस्तित्व बचाने, के लिए,

बचाना है पर्यावरण 

सँवारना है प्रकृति को 

बचाना है, पेड़ों को 

नदियों को बनाना है, प्रदूषण मुक्त

तभी समस्त मानव जाति 

रह पायेगी, सुरक्षित



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