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Puja Guru

Drama

4.0  

Puja Guru

Drama

जीने के लिए

जीने के लिए

1 min
752


आज धरती यह ठहरा है

महामारी का जख़्म यह गहरा है

मलहम का पता नहीं

हर ओर मौत का पहरा है

जो आँखों से दिखता भी नहीं

उसने आँखों को कर दिया है नम

असीम इस वेदना का न दिख रहा है अंत


हवाइयों से आया है

समंदर लाँघ कर

शायद आंख का अँधा है

ये भेद-भाव नहीं जनता


जान की बदौलत

सब अपनी पुश्तैनियों में कैद हैं

बेघरों और झोपड़ियों के

चूल्हे सब मौन हैं


ईश्वर- अल्लाह के दर पे ताले हैं

डॉक्टरों के रूप में आज उपरवाले हैं

हथियारों की भीड़ धरी रह गयी

रह गयी बस इंसानियत

एक पल में सब हो गया माटी


प्रकृति का संतुलन है

मनुष्यो का रुद्रन है

 चितकार ऐसी की

थर्रा रहा कर्ण- कर्ण है

संजीवनी का हर आंखों को इंतज़ार है

आज़ाद सांसों के लिए

जीने के लिए।


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