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Puja Guru

Drama

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Puja Guru

Drama

जीने के लिए

जीने के लिए

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आज धरती यह ठहरा है

महामारी का जख़्म यह गहरा है

मलहम का पता नहीं

हर ओर मौत का पहरा है

जो आँखों से दिखता भी नहीं

उसने आँखों को कर दिया है नम

असीम इस वेदना का न दिख रहा है अंत


हवाइयों से आया है

समंदर लाँघ कर

शायद आंख का अँधा है

ये भेद-भाव नहीं जनता


जान की बदौलत

सब अपनी पुश्तैनियों में कैद हैं

बेघरों और झोपड़ियों के

चूल्हे सब मौन हैं


ईश्वर- अल्लाह के दर पे ताले हैं

डॉक्टरों के रूप में आज उपरवाले हैं

हथियारों की भीड़ धरी रह गयी

रह गयी बस इंसानियत

एक पल में सब हो गया माटी


प्रकृति का संतुलन है

मनुष्यो का रुद्रन है

 चितकार ऐसी की

थर्रा रहा कर्ण- कर्ण है

संजीवनी का हर आंखों को इंतज़ार है

आज़ाद सांसों के लिए

जीने के लिए।


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