मिसाल वो.... मशाल थी....
मिसाल वो.... मशाल थी....
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मर्दानों की भीड़ में
जनाना वो आज़ाद थी
स्वंयरक्षक बनी वो
मिसाल वो मशाल थी
उसकी चीर से भी अनंत थी
स्वभिमान की वो लौ
जो सुलघ गई सुलघी रही
मर्दानों की भीड़ में
जनाना वो आज़ाद थी
भस्म कर गई वो राख
उसके सम्मान के थे जो विद्धवंशी
पराए नही थेअपने ही थेकुलवंशी
अकेली खड़ी थी
अपने ज़िद पर अड़ी थी
बलशाली हार गएआगे उसके
वो ऐसे लड़ी थी
मर्दानों की भीड़ में
जनाना वो आज़ाद थी।