जो कभी ना कहा है
जो कभी ना कहा है


चलो आज कह ही देती हूँ जो कभी ना कहा है ...
क्या पता वक़्त कब थाम ले हमें ....
शब्दों में कैसे पिरों दूँ तुम्हारी अनगिनत यादों को ...
सैलाब उठ जयेगा तेरे नाम का ....
जिसमे जाने हम कब से डूबें हैं ....
चलो फिर भी कह ही देती हूँ ...जो कभी ना कहा है ...
हर मोड़ जो तेरे संग मुड़ गयी मैं ..हर वह समंदर जो तर गयी मैं ....
तेरा जादू ही होगा ......
खुद को हार कर ....जीत गए हम ...
मुस्कुरा रही ऑंखें ...झुक गयी हैं ....
तेरे दीदार का ऐतबार कर ....
चलो आज कह ही देती हूँ जो कभी ना कहा है ...
किताबों
से ...ना गानो की धुन से तुम ....
सुरीले से ....मद्धम से तुम....
खिड़कियां मेरी निहारती हैं तुम्हे ही ...
दिल धकधकी गुनगुनाता है ....
हर हिस्सा मेरा तुझे ही बुलाता है ....
थर्रा रही है जुबान ...
चलो आज कह ही देती हूँ जो कभी ना कहा है ...
मैंने अपने सपनो के महल में तुम्हे रखा है ...
रोज़ किस्से जोड़ती हूँ ...
चाहे तू दूर है आँखों से ....
मैं रोज़ तुम्हे पुकारती हूँ ...
तू सुनता है ...जानू मैं ये ...
तेरी खुशबू हर रोज़ मुझे भिगा जाती है ....
ओढ़ तेरी यादों को
हर रात सो जाती हूँ
चलो आज कह ही देती हूँ जो कभी ना कहा है!