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Puja Guru

Inspirational

4.0  

Puja Guru

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"मैं किस युग की नारी हूँ"

"मैं किस युग की नारी हूँ"

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मैंने कपड़े आज के पहने हैं......

लेकिन काया मेरी सदियों पुरानी........

हाथ मेरे कलम थाम खड़ी हूँ.......

आवाज़ मेरी फिर भी मनमानी........

कदम मेरे आसमानो में हैं......

हद मेरी फिर भी चारदीवारी........

मैं किस युग की नारी......


मूंछो पर ताव देते मर्दाना हाथ.....

जनानो की रीत बनाते हैं.....

तर गयी जो मीलों अकेले.........

फिर राह यह बतलाते हैं.......

खुद जीते हैं भविष्य मैं......

और मुझे सतयुग का पाठ पढ़ाते हैं........

एक पैर मेरे हैं मेरे अस्तित्वा में....

और एक तुम्हारी गढ़ी कस्त में.....

यूँ तो चाँद भी तर गए हम .....

फिर क्यों मुझमे न बराबरी....

मैं किस युग की नारी.....


इज़्ज़त मेरी जाती हैं....

कल....... आज और सदियों से.....

लेकिन इज़्ज़त कहाँ मेरी.....

मेरी काया छाया माया......

पर रीत-प्रीत सब इनकी क्यों......

मेरा क्या हैं....मुझे ज़रा बता दो....

तेरी आज्ञाकारी....

कुरीतियों की मारी..........

ज़रा यह तो बताओ मैं किस युग की नारी......

                


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