अंतर
अंतर
दौलत और शोहरत के चक्रव्यूह में जकड़ा गया,
किस तरह अपनी ही ख्वाहिशों के जाल में पकड़ा गया।
महंगी गाड़ी, बड़ा सा बंगला
इनके आगे दिखता सब धुंधला
क्या समझेगा वह पीर पराई
जिसने अपनों की कर दी रुसवाई
हर तरह के शौक अपनाए
प्रसन्नता हासिल कर ना पाए
तरह-तरह के व्यंजन चख कर देखे
स्वाद किसी का ना मन को भाए
धीरे-धीरे मन उकता सा जाता
जब किसी को करीब ना पाता
यहाँ सब थे अपने मतलब के वासी
कौन समझेगा उसके मन की उदासी
जिनको ना था दौलत का वहम
जो ना रखते थे कोई अहम
देखकर उनको अपनों संग खुश
समझने लगा वह स्वयं को तुच्छ
अब समझ में आई यह बात
दौलत ना देती हर पल साथ
ठुकरा कर उसने दौलत सारी
करी स्वयं को कैद से आज़ाद करने की तैयारी
अकेला बैठा सोच रहा अब,
दौलत की हवस में पीछे छूट गए अपने सब।
