मजदूर
मजदूर
पेट की आग के आगे, वो कितना मजबूर हो गया?
छोड़ी किताबों की गलियां, वो मजदूर हो गया।
कहीं दांव पर लगा बचपन, तो कही जवानी है।
पसीने से लथपथ, उसकी झुलसती चमड़ी की अपनी कहानी है।
ना तपन, ना ठंड, ना बरसात, मौसमों से परे उसका अपना मिजाज है,
उसकी मेहनतकश बाजुओं के आगे, तूफान के हौसले भी हताश हैं।
कद, काठी, पैर के छाले देखकर, कभी उसका अपमान ना करना,
सुकून भरी ख्वाबगाह का शहंशाह है वो, उसकी मेहनत से भरी रियासतों का सम्मान करना ।