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Meenakshi Gandhi

Drama

5.0  

Meenakshi Gandhi

Drama

जागो रे

जागो रे

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प्रकृति...

जिसने हमेशा निःस्वार्थ तेरा साथ दिया

तुझे सुख दिए सुविधाएं दी

तेरे लिए इस कदर तत्पर रही कि -

तेरे इस धरती पर भेजे जाने के

मकसद को पूरा करने में

हर वो जरूरी मदद कर सके

तेरे जिंदगी के सफर को

आनंदित बना सके

और अधिक खूबसूरत

शानदार और मजेदार बना सके ।।


मगर ए इंसान !

बदले में तू क्या कर रहा है ?

झूठे दिखावे में

अपने स्वार्थ में

भूल रहा है तू

उसके हर उपकार को

ख़तम कर रहा है

उसके हर एक मुख्य तत्व को

जल, भूमि, वायु

जंगल, पहाड़, पर्वत

पशु, पक्षी

किसी को भी तो नही बख्शा तूने !


पर ये याद रखना तू भी

इस दुनिया का एक उसूल है -

"जैसी करनी वैसी ही भरनी"

देती ये भी उसे ही

जिसे उसकी कदर होती है

एक सीमा तक वो भी सहन कर जाएगी ।।


मगर जिस दिन उसकी

ये चुप्पी टूटेगी

तू सहन नहीं कर पायेगा

चूर चूर हो जाएगा तेरा घमंड

नष्ट हो जाएगा तेरा अस्तित्व

केवल कुछ पलों में ।।


इसीलिए अभी भी वक़्त है

संभल जा..

मत बन नादान ..

निकल बाहर इस

झूठी शान

और शौकत के चंगुल से

उठ... जाग ..

रक्षा कर उसकी

सम्मान कर -

प्रकृति के हर उस बलिदान का

जिसके बिना

तू भी जानता है

कि तेरा अस्तित्व नहीं है ।।






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