गधों के सींग
गधों के सींग
गधों के भी आज सींग निकल आये है
ये गधे अश्व की खाल पहनकर आये है
वो भूल गये अपनी मूर्खता का सबब,
पैसे के मद में खुद को समझ रहे रब
चापलूसों के दम पे आजकल के गधे
हमें जिंदगी की रेस में हराने आये है
गधों के भी आज सींग निकल आये है
अपने को गधे शहंशाह समझ आये है
कलियुग के आजकल के दौर में,ये गधे,
तुच्छ सींगों को तलवार समझ आये है
ये गधे भूल गये,हम जंगल के राजा है
ये झुंड में शेर को ललकारने आये है
इन गधों को मुँह की ही खानी होगी,
ये एवरेस्ट पर्वत से टकराने आये है
गधों के भी आज सींग निकल आये है
ये तम होकर,रोशनी को डराने आये है
पर जीत तो आखिर सत्य की होती है,
सत्य के आगे हर अंधेरे की माँ रोती है,
गधों के भले आज सींग निकल आये है
घोड़ों के आगे झुक रही इनकी निगाहें है
गधों के सींगों में फैली अंधेरे की बांहे है
वो मिटेगी जरूर हम जो सत्य-गायें है
मुझे पुरुष के पुरुषार्थ की कसम है
गधों के सींग को तोड़ेंगे जरूर हम है
गधों को उनकी औकात बताने आये है
हम शेर है, शेर की तरह ही जीने आये है।