परदेश की नौकरी
परदेश की नौकरी
साथी मेरे जो तुम साथ दे जाते
कसम है हम कभी दूर ना जाते
तुम तो बदल गए जमाने के साथ
मुझको यकीन था तुम ना छोड़ोगे हाथ
अब दूर गए हो तो क्या कहूं
पर बिन कहे भी मैं कैसे रहूँ
वादा था जन्मों साथ निभाने का
क्यों फैसला ले लिए दूर जाने का
बहुत साल हो गए हैं तुमसे मिलकर
तभी बता रहीं हूँ सब हाल लिखकर
अब ये परदेश की नौकरी नहीं चाहिए
छोटी सी हीं सही कुछ खुशियाँ चाहिए
तुम रहोगे तो घर को मकान बनाएंगे
पैसे कम हुए तो प्यार से सजाएंगे
इस बार मेरी बातों को मत टालना
मेरे सवालों का जवाब जरूर डालना
खुश थे वो तुम्हें नौकरी दे गया पर
मेरी तमाम खुशियों को परदेश ले गया।