STORYMIRROR

Sonam Kewat

Abstract Drama Tragedy

4  

Sonam Kewat

Abstract Drama Tragedy

परदेश की नौकरी

परदेश की नौकरी

1 min
162

साथी मेरे जो तुम साथ दे जाते 

कसम है हम कभी दूर ना जाते 

तुम तो बदल गए जमाने के साथ 

मुझको यकीन था तुम ना छोड़ोगे हाथ 

अब दूर गए हो तो क्या कहूं 


पर बिन कहे भी मैं कैसे रहूँ

वादा था जन्मों साथ निभाने का 

क्यों फैसला ले लिए दूर जाने का

बहुत साल हो गए हैं तुमसे मिलकर


तभी बता रहीं हूँ सब हाल लिखकर

अब ये परदेश की नौकरी नहीं चाहिए

छोटी सी हीं सही कुछ खुशियाँ चाहिए

तुम रहोगे तो घर को मकान बनाएंगे

पैसे कम हुए तो प्यार से सजाएंगे


इस बार मेरी बातों को मत टालना

मेरे सवालों का जवाब जरूर डालना

खुश थे वो तुम्हें नौकरी दे गया पर

मेरी तमाम खुशियों को परदेश ले गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract