नए रिश्ते
नए रिश्ते
नयी-नयी सगाई से दिल का।
मौसम खुशगवार था।।
दिल में नए सपने लिए ।
वो घोड़े पे सवार था।।
हर किसी की नजर अब।
शरारत से भर गई ।।
छेड़ने वालों की तादाद।
आस- पास में बढ़ गयी।।
कुछ शुभचिंतक भी अब।
बिना मांगे सलाह देने लगे।।
पत्नी को कैसे "हैंडल" करना है।
ज्ञान वो सब देने लगे।।
पड़ोस के अंकल ने।
पल्लू से ना बंध जाने की हिदायत दी।।
ये तो खुद जोरू के गुलाम है।
उनकी दीदी ने शिकायत की।।
क्या बुरा है बताओ जरा।
खुद को उसे समर्पित कर देना ?
जो खुद अपने जन्म के रिश्ते।
छोड़ के अंजानो में आ गयी हो।।
दोस्तों ने फिरकी लेके कहा ।
भाई अब तो भाभी से पूछ कर ही साथ आएगा।।
हमारा खुला आज़ाद पंछी अब।
बस कुछ ही दिनों में पिंजरे का कैदी बन जायेगा।।
क्या बुरा है बताओ जरा।
उसकी सहमति ले लेना ?
जो अबसे अपने तमाम निर्णय।
मेरी सहमति से लेगी।।
बहिन से शरारत से जुमला उछाला।
अब तो भैया के पर्स पर भाभी का हक होगा।।
हाँ में हाँ मिला कर भाई बोला ।
अब पार्टी से पहले भाभी से पूछना होगा।।
क्या बुरा है बताओ जरा।
अपनी कमाई उसे सौंप देना ?
घर कैसे चलाना है अब से।
वो अपनी माँ से सीख के आएगी।।
नए रिश्तों बन जाने से।
पुराने रिश्ते खत्म नहीं होते।।
किसी एक के आ जाने से।
बाकी सारे लुप्त नहीं होते।।
मजाक के बहाने कई बार।
चिंगारी सी डाल जाते है।।
परवाह दिखाने के बहाने से।
बसने से पहले घर उजाड़ जाते हैं।।