जब भी कभी
जब भी कभी
जब भी कोई क़िताब पड़ती हूं
तो अक्सर खो जाती हूं
क्योंकि लिखी हूं हर कहानी
खुदसे जुड़ने का प्रयास करती हूं
चलती ट्रेन में किताब पढ़ने का मज़ा
तो कोई और ही सुकून देता है
जैसे मंज़िल आगे बड़ जाए तो मज़ा
बहुत आता है और सफ़र आसान होता है।