नज़र और बातें
नज़र और बातें
नज़रों ने बातें की सोचा कि
तुम यूं आंखों में पढ़ लोगे..
ना कि हर बार मुझे यूं
देख के ही सही नजर अंदाज़ करोगे..
आज कल बातें भी नहीं होती
सोचा तस्वीर देख कर याद करोगे..
शायद मेरा खयाल मन में आएगा
और रुकी हुई मुलाकाते फिर से दोहराओगे..
रोज ही ना ही कभी कबार चौकट
पे आने का बहाना तो ढूंढोगे..
कुछ अनकही बाते शायद
फिर से अपने अंदाज़ से करोगे..
लोग पूछते हैं कोन हो तुम
जिसे शायरी से वो तुम्हे और तुम पढ़ोगे..
उन्हें क्या पता ये दिल का हाल
जो कभी मिला नहीं उससे क्या मुलाकात करोगे..

