वो किरायदार
वो किरायदार
चलो आज उनकी बात करते हैं
जो किराए की तौर पर रहने चले आ आते हैं।।
कभी बिन बुलाए मेहमान होते हैं
तो कभी अंजान बनकर दिल में बस कर रह जाते हैं।।
कोई आते हैं जो ज़िंदगी भर का वादा करते हैं
वरना कोई वक्त रहते ही पानी की तरह आगे बह जाते हैं।।
और हम नादान उन्हें या सबको हिस्सा बनाएं रखते हैं
खुदसे ज्यादा उन्हें एमिहयत दे ख़ुद को भुल जाते हैं।।
कुछ कही बातें हमारी और आपकी ज़िंदगी में होती हैं
बस फरक इतना है कुछ उन्हें हमसफ़र या फ़िर हमराही बनाते हैं।।
किराया के घर में तो अपना काम सामान और जगह बनाते हैं
जिसका हिसाब देना पड़ता हैं पर ज़िंदगी में आए लोग आते और चले भी जाते हैं।।
उन्हें कुछ ज्यादा वक्त भी नहीं लगाता खुद और लोगों को भी भुलाते है
चलो आज उनके साथ हम ख़ुद को भी उनसे हमे आज़ाद करते हैं।।
उनको माफ कर खुद को थोड़ा और अच्छी तरह से समझ लेते हैं
उन्हें आना होगा तो आए या फिर किराया का घर छोड़ अलग आशियाना बनाते हैं।।
