इतनी भागदौड़ क्यों
इतनी भागदौड़ क्यों
सरलता हमें प्रकृति देती
अबोध शिशु सरल सौम्य सुगम होता,
बाद में हम असहज होते जाते
प्रकृति के विरोध में आगे बढ़ते जाते।
प्रकृति की दी सरलता को
भूलते चले गए,
बुरे विचारों व संस्कारों से
उसे ढकते चले गये।
हम अपने को विवेकशील मानने लगते
दुष्प्रवृत्तियों के दास बन जाते,
उनके सामने सिर झुका लेते
फिर अपनी आदतों के दास बन जाते।
यदि काम, व्यापार या पढ़ाई नहीं करोगे
तो ज़िंदगी कैसे चलेगी
उस काम से व्यक्ति की जीविका का
आमदनी का सीधा माध्यम होता है।
कृषक को खेत में हल चलाना होगा
व्यापारी को व्यापार करना होगा।
विद्यार्थी को पढ़ाई करनी होगी
काम करना अधिकार व कर्तव्य है।
तुम स्वयं व्यापार या संपत्ति मत बन जाना
जिस व्यापार के लिए अपनी मुस्कराहट त्याग दी,
चिंतन व विचार तक त्याग दिया
क्या उसको करने के उपरांत शांति पा सके ?
तुम अपनी जगह से हट गए
अपना स्थान किसी और के हवाले कर दिया,
इतनी भागदौड़ क्यों किस लिए
कार्य व्यापार आसानी से भी किए जा सकते हैं।