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Meenakshi Bansal

Horror

4  

Meenakshi Bansal

Horror

इंतकाम

इंतकाम

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रात गहराती जा रही थी,

जुल्फ लहराती आ रही थी।

खुले थे केश, 

सफेद था वेश,

दूर से आंखें चमका रही थी,

पास आ रही थी,

पास आ रही थी, 

हाथ में लिए थी फंदा,

स्वर था उसका मंदा,

करुण थी कहानी,

याद आ रही थी नानी।

अचानक वो गरजी,

मेघों सी बरसी।


आंखों में थे शोले,

कोई कैसे उससे बोले,

रूंध गया गला उसकी चीत्कार से,

डर गया मैं उसके नैनों के अंगार से,

ज़बान उसकी अनकही कहानी कह रही थी,

पास आ रही थी,

पास आ रही थी।

हिम्मत करके मैं बोला ,

क्यों डरा रही हो।

किसकी है कहानी,

जो बता रही हो,

वह बोली मैं थी चंद्रलेखा,

बचपन से जिसने महलों को देखा,

सुखी था परिवार ,

प्यार की कहानी थी,

नेहरू में ब्याही गई मैं,

 राजा की रानी थी।


ऐसा आया आंधी का झोंका,

मैंने प्यार में खाया धोखा।

राजा को मिली दूसरी लड़की,

जिसे देखकर मैं बहुत भड़की,

राजा ने विश्वास में लेकर,

किया एक वादा,

छोडूंगा उसे,

तुझसे प्रीत निभाऊंगा,

उसकी खातिर तुझे छोड़ ना पाऊंगा।

रानी आ गई भरोसे में, राजा के धोखे में।

चैन से सो गई बांहों में ,

प्यार की मीठी राहों में,

राजा ने औकात दिखाई,

रानी को मौत की नींद सुला आई,

उसके बाद भी मन नहीं भरा,

दिया उसे फांसी पर टंगा।।

यह मेरे हाथ में वही है फंदा,

जिस पर मैं राजा को लटकाऊंगी।

तभी मैं चैन पाऊंगी,

होगा जो बदला पूरा।

तभी मुक्त कहलाऊंगी।

जो साथ देगा मेरा,

आशीर्वाद मेरा पाएगा।

अपने पूरे जीवन में,

 संकट नहीं पाएगा।।



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