भूतिया सोच
भूतिया सोच
शहर में सन्नाटा है ,पांव पसारे।
घोर अंधेरा है, टिम टिम करते तारे।
अमावस्या की है रात आई,
करें पिशाच बातें ,
अब करना क्या है भाई।
खून पियेंगे जश्न करेंगे,
अच्छाई का सर कलम करेंगे,
जब फैलाएंगे हम बुराई,
दम तोड़ेगी अच्छाई।
घर घर जाकर राज करेंगे,
नीच, पाप हम काज करेंगे।
चारों तरफ अंधेरा होगा,
बुराई का ही सवेरा होगा।
शहर में कतले आम होंगे,
हाथ में सबके जाम होंगे,
बिजली कड़केगी कड़ कड़ कड़,
पानी बरसेगा तड़ तड़ तड़।
चीखें और विलाप होंगे,
हद से ज्यादा पाप हो गए।
कव्वे और गिद्ध नोचेंगे,
क्या करें हम फिर सोचेंगे।
चारों तरफ हमारा साम्राज्य होगा,
भूतों का ही राज्य होगा।