लम्हे जिंदगी के.....
लम्हे जिंदगी के.....
कभी कभी जिंदगी में कुछ ऐसे लम्हे घटित हो जाते हैं जिसकी हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते।ये लम्हे इसे होते हैं जिनको दोबारा याद करने पर सहसा ही हमारे रोंगटे खडे हो जाते हैं। ऐसे लम्हों को हम लोमहर्षक भी कह सकते हैं।कुछ ऐसा ही मेरी नीरस सी पड़ी जिंदगी में घटित हुआ।हुआ यूं कि मुझे किसी इंटरव्यू के लिए दिल्ली जाना पड़ गया। मैं लोहपदगामिनी अर्थात रेलगाड़ी से सफर कर रहा था।रेलगाड़ी अभी कुछ ही दूर पहुंची होगी की अचानक से रुक गई।पूछने पर पता चला की किसी ने चेन खींच दी थी।गाड़ी चलने में अभी वक्त था। मैं अपनी सीट पर आराम।से बैठा था।तभी मैंने देखा एक गरीब आदमी ,जिसके तन पर मुश्किल से एक कपड़ा था मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठ गया।उसके कपड़ों से बहुत तेज दुर्गन्ध आ रही थी।वो बहुत ही कातर दृष्टि से मेरी तरफ एक टक देखे जा रहा था।मुझे लगा उसे भूख लगी होगी शायद।यही सोच कर मैं अपना टिफिन निकल कर उसकी तरफ बढ़ा दिया। उस आदमी ने बिना समय गंवाए झट से मुझसे टिफिन छीन कर फटाफट खत्म कर दिया।ऐसा लग रहा था मानो उसने कई दिनों से कुछ जा खाया हो।खाना उसने खाया था पर पता नही क्यों पेट मेरा भर रहा था।मेरी आत्मा तृप्त हो रही थी।खाना खाकर उसने मेरा धन्यवाद दिया और कहा भगवान आपका हर कदम पर साथ दे। उसके कहे ये शब्द मेरे कानों से होते हुए मेरे हृदय में समा गए।बिजली की जिस गति के साथ वो इंसान मेरे सामने आकर बैठा था ,ठीक उसी गति के साथ चला भी गया।पर उसके जाने के बावजूद उसके कहे शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे।खैर रेलगाड़ी चल पड़ी और मैं मेरे गंतव्य तक पहुंच गया।अगले दिन मेरा इंटरव्यू था। मैं तैयार होकर घर से चल पड़ा।मन में एक अजीब से खुशी थी।मैंने पूरे विश्वास के साथ इंटरव्यू दिया। इंटरव्यू लेने वाले का चेहरा मास्क से छिपा हुआ था।।जब इंटरव्यू का परिणाम घोषित किया गया तब मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था।इतने सारे परीक्षार्थियों में सिर्फ मेरा ही चयन हुआ था।जब अपॉइंटमेंट लेटर मेरे हाथ में थमाते हुए इंटरव्यू लेने वाले ने अपना मास्क उतारा तो मेरे अचरज का कोई ठिकाना न था।ये तो वही भिखारी था जिसे एक दिन पहले मैंने ट्रेन में अपना खाना खिलाया था।ये सब क्या था ? मेरी समझ में कुछ नही आ रहा था। जब हमे सारी सच्चाई का पता चला तो मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था।
इंटरव्यू लेने वाले का परीक्षा लेने का ये एक खास तरीका था।क्योंकि उसे अपनी कंपनी के लिए एक ऐसा बंदा चाहिए था,जिसके दिल में गरीब अमीर के बीच कोई फर्क ना हो।जिसे गरीब के साथ सहानुभूति हो,जिसके दिल में दया हो।इसलिए उसने एक भिखारी का रूप धारण कर के इस परीक्षा को अंजाम दिया।
आज भी मैं जब इस घटना को याद करता हूं तो मेरे तन बदन में एक अजीब से खुशी का अनुभव होता है।सच में दूसरों के लिए की गई भलाई कभी व्यर्थ नहीं जाती।
