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Vikas Sharma Daksh

Romance

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Vikas Sharma Daksh

Romance

इक नज़र भर

इक नज़र भर

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इक नज़र भर देखने को तरसे हैं हम,

खुश्क मौसम में रात भर बरसे हैं हम।


शायद शिद्दत नाकाफ़ी थी चाहतों में,

और से नहीं, हुये बेज़ार हमसे हैं हम।


शाम ढलते ही आती नाकामियाँ याद,

अपनी ही बर्बादियोँ के जलसे हैं हम।


कहीं से आती नहीं सदा मेरे नाम की,

चाहे क़ायम रखते राब्ता सबसे हैं हम।


तन्हाई भी रास आने लगी कुछ-कुछ,

इन दीवारों से बातें किये जबसे हैं हम।


इक सुबह दिखी ना वो सूरत आंखों में,

आईने से भी रहते मायूस तबसे हैं हम।


'दक्ष' की शिकायत खुद के किरदार से,

फैली अफवाह कि खफ़ा उनसे हैं हम।


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