इक मुट्ठी चावल की तलाश में
इक मुट्ठी चावल की तलाश में
चंद खुशियों की तलाश में
अकेले निकले थे हम सफ़र में
राह में कुछ अनजान लोग मिले
पता चला निकले हैं घर से
इक मुट्ठी चावल की तलाश में
जिसे संभाल रक्खा था दिल में
वो बेचारा कभी मिला नहीं
जिसे जाना नहीं था कभी
ख्यालों में भी न सोचा होगा
वो खड़ा था सामने बाहें फैलाकर
अहसासों के दर्पण में आज
इक अजनबी का अक्स देखा
शायद जाना पहचाना-सा था
जवानी कब गुजर गई
हमको अब तक पता न चला
जिंदगी की किताब का
एक पन्ना आज भी खाली रक्खा है
जब भी दिल चाहे बता देना
दिल लगाने वालों की फेहरिस्त
तुम्हारा भी नाम दर्ज़ होगा
यही हक़ीक़त है दुनिया की
जब अँधेरा था उसके घर में
बुझा दीया जलाने वाला कोई न मिला
बुझा जब दीया ज़िन्दगी का
जलाने वालों की कतार लगी थी ।