इज़हार
इज़हार
पल पल हर पल मैं सोचता हूँ
किसी को
प्यार करता हूँ मगर
कहने से डरता हूँ उसको
वो तीन लफ्ज़ रोज़ लबों पे आकर रुक जाते हैं
मैं पागल हूँ, वो अल्हड़ हैं
रोज़ जुदा हो जाते हैं
वो मासूम सी मेरे दिल में हैं बसी कहीं
मैं जहाँ देखूँ
मुझे दिखती हैं एक वहीं
मेरी रूह बस्ती हैं
उसमें ये दिखा दूँगा
मैं प्यार करता हूँ कितना
आज उसे बता दूंगा।

