हे वारिद..!
हे वारिद..!
हे वारिद..!
तुम किसकी तलाश मे
भटकते रहते हो
दर-बदर..?
कौन सी व्यथा है
कह तो नहीं पाते,
पर..
असहनीय वेदना हो,
तो फफक पड़ते हो...!
किसकी तलाश में
हो गये हो आवारा...?
कभी समीर संग
उत्पथ हो जाते हो,
तो कभी
उर्जित ऊर्ज
अपेक्षान्वित गिरी संग
उलझ कर अपना
पथ अवरुद्ध
करवाते हो,
क्या कोई
अपना सा है...
जिसकी तलाश मे तुम
निकल पड़ते हो...?
कभी रौद्र हो जाते हो
तो कभी....
जरा ठहरो...!
मैं भी संग
हो लेती हूँ तुम्हारे,;
मुझे भी
तलाश है
किसी अपने की
जो कहीं खो गई है..!
चलो...!
हम दोनो ही
पथिक हैं
इस पथ के,..!
चलते हैं...
हम दोनों ही भटकने
किसी अपने की तलाश
में....।