हाल-ए-दिल
हाल-ए-दिल
जानते हो हाल-ए-दिल फिर भी अंजान बने रहते हो,
इस दर्द-ए-दास्ताँ की क्यों बेवजह एक वजह बने रहते हो।
तुम्हारे जैसे अपनों ने ही हमें तन्हाई से भी प्यार करना सिखा दिया,
जो राहत देता था इस आहत मन को,
उस अकेलेपन से ही हमने दिल अपना लगा लिया।
यों तो चिराग तले बाती और शमा तले परवाना जलता है,
तुमने हमें लफ्जों के कटाक्ष से जल-भुन जाना सिखा दिया।
जानते हो हाल-ए-दिल फिर भी अंजान बने रहते हो,
इस दर्द-ए- दास्ताँ की क्यों बेवजह एक वजह बन जाते हो।
भँवर में फंसी मेरी नय्या को बीच मझधार में छोड़ के चले जाते हो,
पहले से ही व्यथित था जो,उस ह्रदय से धड़कने का
अधिकार छीनकर उसको तड़पता बिलखता छोड़ जाते हो.
ना सुनायी देने वाला स्पंदन सा होता है एक ह्रदय में
जब हर जख्म और दर्द को हरा कर उसे नासूर बना जाते हो,
ऐसी भी क्या खता हुई हमसे,जो इतनी बेराहमी से जुल्म ढाते हो।
पहले तो बस भावनाओं का सैलाब उठता था,
अब हस्ती पे भी सवालिया निशान है,
बेपनाह प्रेम का ऐसा दर्दनाक अंजाम भी होता है,ये देख मन हैरान है।
जानते हो हाल-ए-दिल फिर भी अंजान बने रहते हो,
इस दर्द-ए-दास्ताँ की क्यों बेवजह एक वजह बने रहते हो।
