गीत बनाकर लाया हूँ
गीत बनाकर लाया हूँ
प्रिये तुम्हारे लिए आज मैं
गीत बना कर लाया हूँ ।
बिना तुम्हारे रहता कैसे
तुमसे ही तो जीवन है
तुमसे ही ये धरा है धानी
तुमसे इसका यौवन है
टूट रही इन साँसों को मैं
मीत बचा कर लाया हूँ।
फागुन की ये मदिर हवाएँ
उर में राग जगाती हैं
मंजरियाँ साँसों में घुलकर
तन मन को महकाती हैं
गुलशन से फूलों को चुनकर
थाल सजा कर लाया हूँ।
डूब चुका था अंधियारे में
खो जाना लगभग तय था
किन्तु तुम्हारी चाह हृदय में
फिर प्राणों को कब भय था
पास रहे न दुष्ट अंधेरा
दीप जला कर लाया हूँ ।