गाँव शहर हो गया है..!
गाँव शहर हो गया है..!
गाँव अब शहर हो चला है,
कंकरीली पथरीली सड़के भी
अब आधुनिक हो चली हैं..
हो भी क्यों ना.... !
जब सारा गाँव उठ कर शहर चल दिया
फिर ये सड़कें
हाँ..!
यही सड़कें जो कभी पगडंडियों से होकर
एक गाँव से गुजरते हुए दूसरे गाँव पहुँचती थी
जो अब एकदम बदल चुकी हैं
अब यहाँ बड़ी बड़ी मिलें खुल रही हैं
मॉल और पिकनिक स्पॉट बन रहे हैं
तो ये कच्चे कांकरीले रास्ते
किसका रस्ता देखें...?
अब कहाँ रह गई वो धूल भरी कच्ची सड़कें..
जब साँझ ढले मवेशियों के साथ
धूल धुसरित बच्चों की टोली गुजरती थी
तब कुछ अलग ही शोभा होती थी
एक तरफ अस्ताचल गामी सूर्य
दूसरी तरफ ये बच्चे
अद्भुत अद्वितीय अकल्पनीय वह दृश्य
और अवर्णनीय व होता वह पल
उसपर से उस गोधूलि बेला की
सबकी अपनी मस्ती.. /
सबकी अपनी अपनी धुन
सब इक दूजे से भिन्न किन्तु
एज दूजे की फिक्र में उलझे..!
अब तो केवल अपनी फिक्र
बदल गई है अब गाँव की आबो हवा भी
मिडिल स्कूल को लग गई है काँन्वेंट् की लगन
अब लुप्त होने लगी है गाँव से अपनी सभ्यता भी
हाँ..!
कुछ शेष है तो वो है
कुछ पुराने विचारों वाले पढ़े लिखे लोग
और शेष है उनके हिस्से की ज़मीदारी
कुछ हरे भरे लहलहाते खेत
और यत्र तत्र दो चार बाग बगीचे..!
कुछ विशेष है तो वो ये कि
अब भी लोग शहर में आकर गाँव को करते हैं याद..!
पर..!
गाँव को उजाड़ कर बना हुआ शहर
अब उगाता है गमलों में आम.. /अमरुद
और रोपता है सब्जियों के बागान अपने छत के ऊपर
पर..!
नहीं मिलती अब गाँव में गाँव वाली बात
क्यूँकि...
आज का गाँव भी आधुनिक हो गया है
उसको शहर के ए. सी. / कूलर वाली हवा लग गई है
गाँव को भी लग गया जिम का चस्का
सच कहूँ क्या...?
विकास के इस दौर में
अब हमारा गाँव गवार नहीं रहना चाहता है
इसलिए पूरा गाँव उठकर शहर चला गया है...!!
अब हमारा गाँव बदल गया है..
बदल गया है हमारा गाँव..!!!