एक सलाम हमारे सैनिको के नाम
एक सलाम हमारे सैनिको के नाम
आ नफ़रत की दीवारों पे, फूल चढा दें,
दुशमन को खुदगरज़ी के, मज़ार दिखा दें,
हम मुल़के मोहब़बत की, तिजारत नहीं करते,
वक़त आये रक़ीबों को, औक़ात दिखा दें।
हम आग के क़ायल हैं, दिल आतिश के घरोंदे,
दरिया हो ख़ुशकी हो, बदनज़र हमने रोंदे,
दुनिया को हम बताते हैं, जीने के फरायज़,
बहकी हुई मौजौं को, तहज़ीब सिखा दें।
हम गलियों के बाशिऩदे, पहचान फ़कीरी,
बसती है आँखों में, हमदरदी की अमीरी,
हम ग़ैर के आँगन के, तलबगार नहीं हैं,
हर घर से वरना, एक सिकंदर उठा दें।
तू मुझसे करे बात, थोड़ा तो भरम रख,
मैं तेरी अना रखूँ तू,मेरी जज़ा रख,
हम हिऩदी चरागां हैं, जलते भी सखावत से,
सूरज को वरना यूँ तो,सेहरा पे बिछा दें।
ताहिर को उड़ने पर, ये हक़ हो हासिल,
ना दायरे आसमान हो, न सरहदें हो शामिल,
आ फिर से आरज़ू कर, पैग़ामे मोहब्बत की,
सर चढ़ी दुनिया को, पैरों पे गिरा दें।