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संजय असवाल "नूतन"

Fantasy

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संजय असवाल "नूतन"

Fantasy

एक ख्वाब

एक ख्वाब

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एक ख़्वाब देखा मैंने,

जब ख्वाब में देखा है तुम्हें......!!

तुम्हारी यादें

वो भूले बिसरे दिन

जब बांहों में बाहें डाल

हम एक नजर से

ख्वाब हसीन देखते थे,

हसीन वादियों में

अक्सर मिला करते थे,

मैं और तुम बस खो जाते थे

हवा की सरगोशियों में,

और प्यार फिजा में

इस कदर घुल मिल जाता था

कि सारा समा

रंगीन नजर आता था,

मैं तुझमें और तुम मुझमें

इस कदर खोये रहते थे

कि बरसों की तन्हाइयां

प्यार में रुसवाइयां

सब तुम्हें देखते ही

छू मंतर हो जाता था,

तुम्हारी ज़िद तुम्हारी अटखेलियां

तुम्हारी चंचल शोखियाँ

सब मन को मेरे भाता था,

तुम्हारा हाथ थामे

तुम्हें बस देखते देखते

कब सुबह से शाम हो जाती

पता ही नहीं चलता,

तुम्हारी छुअन

मखमल सी हंसी

दिल में मेरे गुदगुदी सी करती थीं,

और तुम मेरी बांहों में

इस कदर सिमटी रहती 

कि

सर्द रातें भी गुलाबी हो जाती...!



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