गुमनाम सी मोहब्बत
गुमनाम सी मोहब्बत
एक गुमनाम सी मोहब्बत
मेरे लिए ढेरों पैगाम ले आती है
कहीं तन्हाई में रो न पडूं
इसलिए वो खुशियों की महफ़िलें तमाम ले आती है
एक गुमनाम सी मोहब्बत
उसे मालूम है शायद
प्रकृति मेरा अनुराग है
मेरे हृदय के मकान में
वो जलता एक चिराग है
इसलिए वो ढलते दिन का लालिमा भरा सूरज
वो तारों की शाम ले आती है
एक गुमनाम सी मोहब्बत
वो जानती है शायद
मेरे कल्पनाओं में हकीकत को बुनने से
तस्वियों जैसे शांत पहाड़ों से भी
एक आवाज सुनने से
इसलिए वो शायरों सी कारीगरी
सर- ए- आम ले आती है
एक गुमनाम सी मोहब्बत
शायद जिंदगी के रास्तों में
मेरा अकेले चलना उसे खटकता है
मेरी आँखों में कोई तस्वीर न पाकर
उसका मन भटकता है
इसलिए वो मेरे संग जोड़ने
अपना नाम ले आती है
एक गुमनाम सी मोहब्बत....
