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संजय असवाल "नूतन"

Fantasy

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संजय असवाल "नूतन"

Fantasy

मेरा मन !

मेरा मन !

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मेरा मन बादलों सा उड़ने लगा है

पहाड़ी नदी सा कलकल करने लगा है 

कभी मृग बन कुलांचे भरता है वन में,

कभी औंस बन मोती बनने लगा है

मेरा मन बादलों सा उड़ने लगा है।


खेतों खलिहानों में अक्सर मंडराता है 

आमों की डालियों में चहकने लगा है 

कभी कोहरा सा छा जाता है गगन में, 

कभी मंदिरों में घंटियों सा बजने लगा है

मेरा मन बादलों सा उड़ने लगा है।।


फूलों की खुशबुओं से सरोबार रहता है

भोंरों सा गुंजन करने लगा है

कभी खुद ब खुद हंसने लगता है

कभी यादों में खुदके रोने लगा है

मेरा मन बादलों सा उड़ने लगा है।


वो अक्सर राहों को तकता रहता है

उम्मीद में किसी की बैठा रहता है

हर आहट पर चौंक जाती है नज़रे उसकी

जब सामने से उसके कोई गुजरता है

मेरा मन बादलों सा उड़ने लगा है।।


वो अब अपनों से कतराने लगा है

दुनियां जहां से दूर जाने लगा है

खोया रहता है वो खुद में अक्सर

हवाओं से बातें करने लगा है

मेरा मन बादलों सा उड़ने लगा है।


लिखता है वो दर्द ए दिल कलम से

गम ए जुदाई बयां करता है रब से

जब रुकते नहीं आंखों से आंसू उसके

जख्मों को वो अपने खुद सीने लगता है

मेरा मन बादलों सा उड़ने लगा है।।


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