दुश्वारियां बहुत है..!
दुश्वारियां बहुत है..!


ज़िन्दगी में तो यारियां बहुत है,
पर खास को मिलने में दुश्वारियां बहुत है,
वो तराशे हुए मूरत से कम नहीं यारों,
उसकी खूबसूरती में कलाकारियाँ बहुत है।
संगमरमर भी शरम करता है खुद पर,
इनके रुखसार का जो कायल है ये,
लब तो खामोश मग़र आंख भीग जाती है,
यादों में हूँ, पर यारों की मशवारियां बहुत है।
मेरे ख्वाब उनके लिए तरन्नुम गाते हैं,
सच में न सही, ख्वाबों में रोज़ आते हैं,
कैसे मिलें, बिना ज़माने की झंझट से,
बेदाग दामन उनका, यहां दाग बहुत हैं।
जहमत तो नहीं है, चाँद रोज़ निकलता है,
चांदनी मिलती है, पर बादलों का पहरा है,
कुछ ऐसा ही हाल है मेरा भी उनको लेकर,
मैं भी मिलता हूँ, लोगों की पहरेदारियाँ बहुत है।