दरवाजा जिंदगी की
दरवाजा जिंदगी की
दरवाजा जिंदगी की खुला था इस तरफ
लौटना उस तरफ आज क्यों खुलता नहीँ।।
आंखें जो नापि थि दूरियां दूर तलक
देखता मुड़ कर कुछ भी अपना नहीँ।।
ख़ुद ही निकला था ख़ुद की ठिकाने से
खोजता लौटकर ठिकाना मिलता नहीँ।।
निकला जो सूरज तो, उजाला बंट गया
आश को साँस का भरोसा मिलता नहीँ।।
इस रास्ते को अपनाया , रिश्ते वो छूट गये
ढह चुकी दीवारों को नींव से बावस्ता नहीँ।।
किसी के मन में मैल तो और किस में मेल
मैल के साथ मेल का सुर भी मिलता नहीँ।।
आहत जो चाहतें हैं आहते में रख लिया
दफने ख्वाहिशें को कफ़न भी मिलता नहीं।